आज किसानों द्वारा दायर जनहित याचिका (PIL) की सुनवाई के दौरान Supreme Court ने किसान आंदोलन(Kisan Andolan) को लेकर बेहद ही सख्त़ टिप्पणी की है. यह टिप्पणी ऐसे वक्त आई है जब किसान संगठनों की बात को सरकार सुनने को तैयार नहीं.
मालूम हो कि लगभग 1 साल से तीन कृषि कानूनों को लेकर किसान आंदोलन कर रहे हैं. जिसके कारण सड़कों और हाईवे पर जाम की समस्या बनी रहती है.
सुप्रीम कोर्ट ने कई बार सरकार और किसान यूनियनों से कहा है कि वह मिल बैठकर जितनी जल्दी हो इस समस्या का समाधान कर ले.
लेकिन ना ही सरकार अपनी तरफ से कोई पहल कर रही है और ना ही किसान झुकने को तैयार हैं. इसका सबसे ज्यादा खामियाजा आम जनों को भुगतना पड़ रहा है जो कि दिल्ली के तरफ सड़क मार्ग से आते हैं या फिर दिल्ली से हरियाणा या यूपी जाते हैं.
किसान आंदोलन के कारण व्यापारियों को भी घाटा लग रहा है क्योंकि दिल्ली आने के लिए उनको लंबा रास्ता तय करना होता है. जिस कारण माल की सप्लाई में बाधा उत्पन्न हो रही है.
अब स्थानीय लोग भी किसान आंदोलन से परेशान होने लगे हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि किसानों का आंदोलन सही है लेकिन इससे आम जनों को काफी परेशानी हो रही है. इसलिए सरकार जितनी जल्दी हो सके किसानों के साथ मिल बैठकर आपसी बातचीत से इस मुद्दे का हल निकाल ले.
आंदोलन करने वाले किसान संगठन अब चाहते थे कि उनको दिल्ली के जंतर मंतर पर धरना प्रदर्शन करने की इजाजत दी जाए. क्योंकि किसानों ने देखा कि सड़क और हाईवे को जाम करने से सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ रहा. इसलिए अपनी बात वह दिल्ली आकर कहना चाहते थे.
दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन करने के लिए किसान संगठनों ने आज एक पीआईएल सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी. जिसमें सर्वोच्च अदालत से यह मांग की गई थी कि किसानों को जंतर मंतर पर प्रदर्शन करने की इजाजत दी जाए.
जहां किसान शांतिपूर्ण ढंग से अपनी बात सरकार से कह पाए. किसानों ने इस पीआईएल में कहा था कि जंतर-मंतर पर सिर्फ 200 लोगों को आंदोलन में शामिल होने की इजाजत दी जाए.
आज सुप्रीम कोर्ट में इस पीआईएल पर सुनवाई हो रही थी. जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट के तेवर बेहद ही सख्त नजर आए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा आप के आंदोलन के कारण सड़कें और हाईवे पहले से ही जाम है क्या आप चाहते हैं कि हम इसी समस्या को दिल्ली के अंदर भी पैदा करें.
सुप्रीम कोर्ट की इस सख्त टिप्पणी से जहां सरकार को थोड़ी राहत मिली है वहीं किसान संगठनों के खेमे में उदासी है. लेकिन किसान नेताओं का कहना है कि वे अपना आंदोलन शांतिपूर्ण ढंग से चलाते रहेंगे और साथ ही अदालत के आदेश का भी सम्मान करेंगे.
दो दिन पहले भी हाईवे जाम को लेकर कुछ पीआईएल पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आंदोलन करना किसानों का हक है. लेकिन इससे आम जनों को अब काफ़ी परेशानी हो रही है. इसका ध्यान रखना भी बेहद जरूरी है.
बीते दिन ही पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अमित शाह और जेपी नड्डा से मुलाकात की थी. उन्होंने कहा था यह मुलाकात किसानों की समस्याओं को लेकर था और हम चाहते हैं कि जल्द से जल्द किसानों की समस्याएं सुलझ जाए.
मीडिया रिपोर्ट्स में ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि कैप्टन अमरिंदर सिंह को भाजपा में शामिल कर कृषि मंत्रालय का प्रभार दिया जा सकता है. लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भाजपा में शामिल होने को लेकर साफ़ इनकार कर दिया है.
कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा है मैं कांग्रेस छोड़ रहा हूं लेकिन भाजपा को भी ज्वाइन नहीं करूंगा.कैप्टन अमरिंदर सिंह के बयान से यह साफ़ लगने लगा है कि हो ना हो कैप्टन अमरिंदर सिंह अपनी एक नई पार्टी बनाएं और पंजाब में परोक्ष रूप से BJP को साथ दें.
अगर किसानों के मुद्दे पर अमरिंदर सिंह सरकार और किसान संगठनों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाते हैं और अगर वह इसमें सफल रहते हैं तो आने वाले विधानसभा चुनाव में पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह एक नए समीकरण बनाने में सफल हो सकते हैं, जिसमें बीजेपी और अमरिंदर सिंह के बीच गठबंधन की बातचीत संभव है.
लेकिन अभी कोई भी कयास लगाना बहुत ही जल्द बाजी होगी क्योंकि पंजाब में आम आदमी पार्टी की भी और मजबूत पकड़ बनती जा रही है. आम आदमी पार्टी पंजाब में प्रमुख विपक्षी पार्टी है और जिस प्रकार से अरविंद केजरीवाल पंजाब चुनाव के लिए एक के बाद एक घोषणाएं कर रहे हैं उससे यह लग रहा है कि पंजाब में किसी भी एक दल के लिए आसानी से चुनाव जीतना मुमकिन नहीं है.
कांग्रेस पार्टी पंजाब में बुरी तरह फंस चुकी है, सिद्धू ने कांग्रेस पार्टी को ऐसी जगह पर लाकर खड़ा कर दिया है जहां से वह ना तो आगे बढ़ पा रही है ना तो पीछे लौट पा रही है. पंजाब में चुनाव में दो ही मुद्दा चल सकता है एक तो पंजाबी अस्मिता का और दूसरा किसानों का मुद्दा.
मालूम हो कि पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष पद से नवजोत सिंह सिद्धू ने अपना इस्तीफा दे दिया था लेकिन पार्टी हाईकमान ने उनके इस्तीफे को अभी तक स्वीकार नहीं किया है.
रूठे नवजोत सिंह सिद्धू को मनाने की जिम्मेदारी पंजाब के वर्तमान मुख्यमंत्री को दी गई है. कल पंजाब के मुख्यमंत्री और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच एक बैठक हुई थी लेकिन बैठक बेनतीजा रहा.
उधर कांग्रेस में अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर गहमागहमी मची हुई है. कपिल सिब्बल मनीष तिवारी जैसे वरिष्ठ नेता खुले रूप से अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर सवाल खड़े कर रहे हैं. कल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने भी शीर्ष नेतृत्व को लेकर नाराजगी जाहिर की थी.
वरिष्ठ नेताओं की नाराजगी को देखते हुए कांग्रेस पार्टी की तरफ से बयान आया है कि जल्द ही कांग्रेस वर्किंग कमिटी(CWC) की बैठक बुलाई जाएगी. मालूम हो कि बीते दिनों कांग्रेसमें कुछ ऐसे बड़े फैसले लिए गए हैं जिसको लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में खासी नाराजगी है.
कुछ कांग्रेस नेताओं का कहना है कि कांग्रेस में जो फैसले लिए जा रहे हैं आखिर वो फैसले कौन ले रहा है इसको लेकर कहीं भी स्थिति स्पष्ट नहीं है जो कि अच्छी बात नहीं है.
अब देखना यह है कि कांग्रेस पार्टी पंजाब में अपने बिखरे हुए कुनबे को कैसे समेट पाती है. खासकर तब जब कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसे वरिष्ठ नेता ने कांग्रेस से किनारा कर लिया है.