तीन कृषि कानूनों (Farm Laws) को आज PM Modi ने वापस लेने की घोषणा कर दी है. लेकिन MSP पर सरकार ने अभी भी चुप्पी साध रखी है. बिना उचित समर्थन मूल्य के शायद यह किसानों की अधूरी जीत होगी.
1 साल से कुछ अधिक समय बीत जाने के बाद आज का दिन किसानों के लिए एक बड़ा दिन है. आज पीएम मोदी ने सितंबर 2020 में लाए गए कृषि कानून को वापस लेने की घोषणा कर दी है.
पीएम मोदी ने इसके लिए किसानों से और देश की जनता से माफी भी मांगी है. उनका कहना है कि हम लोगों ने कृषि कानून को किसानों के हित के लिए लेकर आए थे. किसानों को कानून से जो आपत्तियां थी उस पर भी बात करने के लिए तैयार थे.
PM Modi ने कहा हम आपत्तियों पर मिल बैठकर बात करना चाहते थे और एक उचित समाधान निकालना चाहते थे. लेकिन किसान तैयार नहीं हुए. इसलिए हम इन तीनों कृषी कानूनों को वापस लेने की घोषणा करते हैं.
लेकिन इस अभिभाषण में MSP पर कोई बात नहीं कही गई.जहां तक किसान नेताओं का सवाल है तो राकेश टिकैत ने साफ कहा है कि जब तक यह तीनों कानून संसद में वापस नहीं हो जाते तब तक आंदोलन को वापस नहीं किया जाएगा.
मालूम हो कि अभी संसद सत्र नहीं चल रहा और कृषि कानूनों को आगामी संसद सत्र यानी कि शीतकालीन सत्र में वापस लिया जा सकता है. जिसके लिए प्रधानमंत्री के इस घोषणा के बाद प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी.
तीनों कृषि कानून वापस होने के बाद यह किसानों की जीत तो है लेकिन यह अधूरी जीत है. क्योंकि किसानों की सबसे बड़ी परेशानी है उनके फसलों का उचित मूल्य मिलना.
संपूर्ण देश में मात्र 30 से 40% खरीदारी ही एमएसपी पर हो पाती है. ऐसे में किसानों का यह कहना है कि एमएसपी पर एक कानून बने और वह कानून ऐसा हो कि कोई भी व्यक्ति चाहे सरकार हो या फिर व्यापारी एमएसपी से कम दाम पर खरीदारी ना कर सके.अ
अगर इस पूरे आंदोलन पर विचार करें तो इस आंदोलन के केंद्र में तीन कृषि कानून तो जरूर थे लेकिन बात किसानों को मिलने वाले उचित मूल्य की ही ज्यादा थी.
ऐसे में तीनों कृषि कानूनों को लाना और फिर वापस लेना बहुत बड़ी बात नहीं है.क्योंकि इससे भले ही कुछ लोग यह बोले कि सरकार झुक गई है लेकिन इससे सरकार को कोई नुकसान नहीं हुआ है.
यह तो साफ है कि इन तीनों कृषि कानूनों के वापस लेने और प्रधानमंत्री मोदी के बदले हुए सुर आने वाले विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में भाजपा को फायदा ही होगा घाटा नहीं.
इस प्रकार से इन तीनों कृषि कानून को लाया जाना और फिर इसे चुनावी मौसम में वापस लिया जाना ठीक वैसे ही है जैसे कि ना हींग लगे ना फिटकरी और रंग भी चोखा.
कृषि कानूनों की वापसी से कुछ ही महीनों बाद पंजाब में होने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को जबर्दस्त फायदा हो सकता है. क्योंकि कृषि कानूनों की वापसी का श्रेय कोई कहे या ना कहे लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह को जरूर मिलेगा.
मालूम हो कि जब कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पंजाब के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था तो वह प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह से मिलने दिल्ली गए थे और जिसके बाद उन्होंने कहा था कि हम वहां राजनीतिक बात करने नहीं गए थे बल्कि किसानों की समस्या के लिए बात करने गए थे.
अब यह भी साफ होने लगा है कि पंजाब चुनाव में कैप्टन अमरिंदर सिंह की नवगठित पार्टी और बीजेपी के बीच में गठबंधन होने की पूरी संभावना है.
बीजेपी को खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में और सेमी अर्बन क्षेत्रों में जहां की प्रचार-प्रसार करने तक की अनुमति नहीं मिल रही थी. वहां इन तीन कृषि कानूनों की वापसी के बाद बीजेपी की स्थिति मजबूत हो सकती है.
वहीं बात अगर UP चुनाव की करें तो बीजेपी को यह एहसास होने लगा था कि अगर यह तीनों कृषि कानून वापस नहीं लिए गए और किसान आंदोलन से वापस नहीं लौटे तो उसे खासकर पश्चिमी यूपी में भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है.
पिछले दिनों उपचुनाव में जो नतीजे आए उस ने बीजेपी को आत्म चिंतन और हाथ मंथन के लिए मजबूर कर दिया था. साथ ही पंजाब पश्चिमी यूपी एवं हरियाणा में लोगों के गुस्से को बीजेपी समझने लगी थी.