SAARC देशों के विदेश मंत्रियों की महत्वपूर्ण बैठक को पाकिस्तान के तालिबानी प्रेम की वजह से टालना पड़ा.
पाकिस्तान चाहता था कि तालिबान को भी इस बैठक में शामिल किया जाए. लेकिन सार्क यानी साउथ एशियन एसोसिएशन फॉर रीजनल कोऑपरेशन के सदस्य देशों ने पाकिस्तान की इस मांग को एक सिरे से खारिज कर दिया.
मालूम हो कि सार्क संगठन में भारत पाकिस्तान अफगानिस्तान समेत 8 देश शामिल हैं.
25 सितंबर को न्यूयॉर्क में सार्क देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक होने वाली थी. यहां यह बताना जरूरी है कि चाइना सार्क का हिस्सा नहीं है.
आठ दक्षिण एशियाई देशों का संगठन सार्क(SAARC) जिसमें भारत बांग्लादेश भूटान मालदीव नेपाल पाकिस्तान अफगानिस्तान और श्रीलंका शामिल हैं, इसके महत्वपूर्ण बैठक का टल जाना एक महत्वपूर्ण और अप्रत्याशित घटना है.
इस घटना ने एक बार फिर से पाकिस्तान को बेनकाब कर दिया है. पाकिस्तान हमेशा से तालिबान का हितैषी रहा है. वह चाहता है कि SAARC में अफगानिस्तान की अगुवाई करने का मौका तालिबानी सरकार को दिया जाए.
जब से तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया है, पाकिस्तान एन केन प्रकारेण तालिबानी सरकार को वैश्विक मान्यता दिलाने की होड़ में लगा है.
जहां सार्क(SAARC) के अन्य सदस्य देश या चाहते थे की बैठक के दौरान अफगानिस्तान की कुर्सी को खाली रखा जाए, वहीं पाकिस्तान अपनी जिद पर अड़ा था कि अफगानिस्तान की नुमाइंदगी का मौका तालिबान को दी जाए.
अभी हाल में ही संपन्न हुए शंघाई सहयोग संगठन(SCO) की बैठक में पीएम मोदी (PM MODI) ने अफगानिस्तान को लेकर भारत के रुख को साफ करने की कोशिश की थी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने SCO की बैठक में साफ-साफ कहा था कि चरमपंथ कई समस्याओं की जड़ है. अफ़ग़ानिस्तान में अलोकतांत्रिक तरीके से बनी सरकार को मान्यता देने संबंधित विषय पर भी पीएम मोदी ने कहा था गैर समावेशी सरकार को मान्यता देने से पहले विश्व के देशों को इस पर गंभीर चिंतन मनन करना चाहिए.
मालूम हो कि चीन शंघाई सहयोग संगठन का प्रमुख सदस्य है और तालिबान को समर्थन देने में पाकिस्तान के सुर में सुर मिलाता रहता है.