CRPF कोबरा कमांडो राकेश्वर सिंह के परिवार वालों के लिए आज बेहद ही खुशी का दिन है पूरे 5 दिनों के बाद नक्सलियों ने उन्हें छोड़ दिया है.
अभी यह पता नहीं चला है कि नक्सलियों ने यह रिहाई सशर्त की है या फिर बिना किसी शर्त के.
मालूम हो कि 3 April को नक्सली हिंसा में 22 जवान शहीद हो गए थे वही पांच नक्सलियों के मारे जाने की भी पुष्टि नक्सली नेताओं द्वारा की गई है.
राकेश्वर सिंह की रिहाई से उनके परिवार में खुशी का माहौल है खासकर उनकी पत्नी मीनू जो लगातार यह मांग कर रही थी कि उनके पति की सुरक्षित रिहाई जल्द से जल्द कराई जाए.
इसके लिए उन्होंने पाकिस्तान से छुड़ाए गए वायु सेना के अधिकारी अभिनंदन का उदाहरण भी दिया था. राकेश्वर सिंह ने साल 2011 में कोबरा बटालियन को ज्वाइन किया था वहीं तीन महीने पहले उनकी छत्तीसगढ़ में पोस्टिंग हुई थी.
छत्तीसगढ़ के कुछ इलाके बीजापुर सुकमा इत्यादि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों की सूची में टॉप पर रहते हैं यहां के घने जंगल नक्सलियों के लिए हमेशा से सुरक्षित और पसंदीदा पनाह रहे हैं.
छत्तीसगढ़ में यह कोई पहली हिंसा नहीं है इसी साल 23 मार्च को नक्सली हिंसा में हमारे 5 जवान मारे गए थे. इससे पहले भी कई घटनाएं हुई हैं जिसमें हमारे जवान शहीद हुए हैं.
साल 2010 में सुकमा जिले में नक्सलियों ने एक बड़ी घटना को अंजाम दिया था जिसमें हमारे 76 जवान शहीद हो गए थे इस घटना में जिस मास्टरमाइंड माडवी हिडमा का नाम चर्चा में आया था इस घटना में भी उसी को मास्टरमाइंड बताया जा रहा है.
माडवी हिडमा नक्सलियों के बटालियन नंबर वन का कमांडर है और इस क्षेत्र में इसका काफी दबदबा है.
ऐसा नहीं है कि सरकार ने नक्सलियों को नक्सली हिंसा छोड़ने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया है सरकार ने साल 2015 में प्रगति प्रोजेक्ट को शुरू किया था इसके अंतर्गत नक्सली हिंसा से प्रभावित दूरदराज वाले इलाकों में विकास कार्यों को बढ़ावा देने का काम किया जाता है.
नक्सलियों से निपटने में सबसे बड़ी परेशानी है इनका गांव के लोगों में पैठ और दूसरा इनका ऊंचाइयों पर पनाह लेना साथ ही यह लोग यहां के घने जंगलों के चप्पे-चप्पे से परिचित हैं जिससे हिंसा के बाद इन्हें सुरक्षित ठिकानों तक पहुंचने में मदद मिलती है.