देश में कोरोना की दूसरी लहर चल रही है जो कि पहले से कही ज्यादा भयावह और खतरनाक है.
दिन प्रतिदिन कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है अब तो 90 हजार से लेकर 1 लाख से भी ज्यादा मामले प्रतिदिन आ रहे हैं.
इन बढ़ते मामलों को देखते हुए सरकार और प्रशासन केंद्र और राज्य स्तर पर फिर से नियमों को सख्त करने में लग गए हैं.
बिहार जैसे प्रदेश जहां रोजगार के साधन बहुत ही कम हैं??
नियमों के सख्त होने से खासकर युवाओं में जो कि प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं उनमें रोष और असंतोष का माहौल है.
बिहार जैसे प्रदेश जहां रोजगार के साधन अन्य राज्यों के मुकाबले बहुत ही कम हैं. इसका पता प्रति व्यक्ति आय से भी चलता है जो कि मात्र 31287 रू है.यही वजह है कि यहां लोग सरकारी नौकरी को अपनी पहली प्राथमिकता देते हैं.
इस कारण सरकारी नौकरी की तैयारी करवाने वाले कोचिंग और 10वीं तथा 12वीं में अच्छे रिजल्ट दिलाने वाले संस्थानों की यहां भरमार है और साथ ही साथ यही कोचिंग और इससे जुड़े संस्थान बिहार में लाखों लोगों के रोजगार का साधन भी हैं.
covid-19 की नई Guideline है विरोध की वजह
covid-19 के कारण लगभग 8 से 10 महीनों तक कोचिंग तथा स्कूल पूर्ण रूप से बंद रहे थे लेकिन कुछ महीने पहले से हालात सामान्य होने लगे थे फिर से सब कुछ पटरी पर आने लगी थी.
अब एक बार फिर से जब सरकार ने सख्ती करनी चाही तो छात्रों और शिक्षकों का गुस्सा सातवें आसमान पर है.
ताजा घटनाक्रम सासाराम का है जहां कोचिंग चलाने वाले शिक्षकों और छात्रों ने सख्ती के विरोध में जमकर बवाल काटा.
मालूम हो कि बिहार में कोरोना पेंडेमिक के लिए नई गाइडलाइन जारी की गई है जिसके अंतर्गत स्कूल कॉलेज और कोचिंग संस्थानों को 11 अप्रैल तक बंद रखने को कहा गया है.
छात्रों और शिक्षकों का कहना है कि जब चुनाव होते हैं तो सरकार सभी नियमों को ताक पर रखकर बड़ी-बड़ी रैलियों के आयोजन पर मौन रहती है लेकिन चुनाव खत्म होते ही सारे नियम कानून सामने आने लगते हैं.
हिंसा और उपद्रव नहीं है समाधान
हिंसा और उपद्रव किसी भी समस्या का हल नहीं है और ना ही किसी को इसकी सराहना करनी चाहिए लेकिन सरकार और प्रशासन को भी चाहिए कि जो भी नियम हो उसे बिना किसी भेदभाव के लागू करे.
ऐसा इसलिए जरूरी है क्योंकि लोकतंत्र की पूंजी और ताकत जनता का सरकारी तंत्र एवं संवैधानिक संस्थानों में आस्था और विश्वास है.
इस आस्था और विश्वास को हर स्तर पर बनाए रखने की कोशिश अनव्रत होनी चाहिए.
वहीं छात्रों और शिक्षकों से भी यही उम्मीद की जाती है कि वे किसी भी परिस्थिति का सूक्ष्म विश्लेषण करें ना कि फेक न्यूज़ और फेक मैसेज जिनका सोशल मीडिया पर धड़ल्ले से आदान-प्रदान होता है उसे देख कर यह सोचने लगें कि कोरोना सिर्फ एक भ्रम है और इससे कुछ भी नहीं होता.
सब को यह मानकर चलना चाहिए कि यह एक गंभीर महामारी है और इससे लड़ने और इसे हराने की जिम्मेदारी हम सबकी है.