बजरंग दल(Bajrang Dal) कार्यकर्ता की हत्या से कर्नाटक शिवमोगा(Karnataka Shivamogga) में बढ़ा तनाव, हिजाब विवाद(Hijab Controversy) को लेकर हत्या की आशंका, स्कूल कॉलेजों को बंद करने के निर्देश
आज कर्नाटक(Karnataka) से एक बड़ी खबर सामने आ रही हैं जहां बजरंग दल(Bajrang Dal) के कार्यकर्ता जिसका नाम हर्षा(Harsha) बताया जा रहा है और जिसकी उम्र 26 साल है उसकी हत्या चाकू मारकर कर दी गई है.
इस हत्या के पीछे के कारणों का अभी तक स्पष्ट रूप से पता नहीं चला है लेकिन कुछ मीडिया रिपोर्ट में यह बात सामने आ रही है कि बजरंग दल से जुड़े कार्यकर्ता हर्षा ने कुछ दिन पहले ही हिजाब विवाद को लेकर फेसबुक पर एक पोस्ट लिखा था.
कुछ मीडिया रिपोर्ट में बातें सामने आई है कि हो सकता है कि यह यह ह्त्या फेसबुक पोस्ट(Facebook Post) के कारण हुई हो लेकिन अभी तक पुलिस ने इस बारे में किसी प्रकार की कोई जानकारी नहीं दी है.
दूसरी तरफ कर्नाटक के एक मंत्री का विवादित बयान सामने आया है. कर्नाटक के रूरल डेवलपमेंट और पंचायत राज मंत्री ईश्वरप्पा ने बजरंग दल के कार्यकर्ता हर्षा के हत्या को लेकर बेहद ही उकसावे वाला बयान दिया है.
रूरल डेवलपमेंट और पंचायत राज मंत्री ने कहा है कि मैं व्यक्तिगत रूप से बजरंग दल कार्यकर्ता की हत्या से बहुत ही दुखी हूं और यह हत्या मुस्लिम गुंडों द्वारा की गई है.
बताते चलें कि कर्नाटक में उडुपी में हिजाब विवाद को लेकर जो मामला गरमाया था उसे बजरंग दल के कार्यकर्ता की हत्या के बाद फिर से बल मिलने लगा है.
वहीं अभी हिजाब विवाद का मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन है और अभी तक हाईकोर्ट ने इस संबंध में सिर्फ एक निर्देश दिया हैं जिसमें कि यह कहा गया था कि स्कूल कॉलेजों में किसी भी प्रकार के धार्मिक पहनावे को अनुमति नहीं दी जाएगी जब तक के हाई कोर्ट का अंतिम फैसला नहीं आ जाता.
हिजाब विवाद को यूपी चुनाव(UP Election) से भी जोड़कर देखा जा रहा है क्योंकि यूपी में पिछले तीन चरण के मतदान के दौरान BJP SP Congress सहित अन्य पार्टियों ने ध्रुवीकरण का मुद्दा जोरशोर से उठाया लेकिन यह मुद्दा काम करता नहीं दिख रहा.
कुछ लोगों का आरोप यह भी है कि हिजाब विवाद को कांग्रेस के द्वारा तूल दिया जा रहा है क्योंकि इस मामले में मुस्लिम पक्ष की ओर से दलील पेश करने के लिए जो वकील हैं उनका संबंध कांग्रेस से बताया जा रहा है.
जबकि जबकि इस संबंध में मुस्लिम पक्ष के वकील से सवाल किया गया तो उनका यही कहना था कि किसी दल को मानना या उसमें अपनी आस्था प्रकट करना यह अलग बात है और वकालत का पेशा अलग है इसलिए इन दोनों चीजों को एक साथ में नहीं देखा जा सकता.