Youngest Liver Donor Girl India: केरल की नाबालिक 17 साल की लड़की देवनंदा ने जीता सबका दिल.. बीमार पिता के लिए किया लिवर डोनेट, नाबालिक को नहीं दी जाती है ऑर्गन डोनेशन की इजाजत हाईकोर्ट ने दी स्पेशल परमिशन
केरल की 17 साल की नाबालिक लड़की(Minor Girl) ने एक बार फिर वह कर दिखाया जिसके लिए बेटियां जानी जाती हैं. केरल की नाबालिक लड़की ने अपने बीमार पिता के लिए बिना किसी परवाह के बाधाओं को पार करते हुए अपना लिवर डोनेट किया. बताते चलें कि किसी भी नाबालिग को ऑर्गन डोनेशन(Organ Donation) की इजाजत नहीं होती है.
लेकिन केरल की 17 साल की इस लड़की ने सभी मुसीबतों को पार करते हुए लिवर डोनेशन की इजाजत के लिए हाई कोर्ट का रुख किया और केरल हाईकोर्ट ने भी मौके की नजाकत को देखते हुए नियमों में बदलाव करते हुए विशेष व्यवस्था की और लड़की को स्पेशल परमिशन के जरिए अपने पिता को लीवर देने की इजाजत दे दी.
केरल की देवनंदा 12वीं कक्षा की छात्रा है और उसकी उम्र 17 साल है. अगर बात देवनंदा के पिता की करें तो उनका लीवर खराब हो गया था और उन्हें कैंसर भी था. अपने पिता की बीमारी को देखते हुए 17 साल की बेटी ने यह फैसला किया कि वह अपने पिता की जान बचाएगी.

देव नंदा को अपने पिता को लिवर डोनेट करने में सिर्फ कानून ही आड़े नहीं आया बल्कि देव नंदा का स्वास्थ्य भी उन्हें यह इजाजत नहीं दे रहा था कि वह अपने पिता को अपना लिवर डोनेट करे. क्योंकि जब देवनंदा ने यह फैसला किया कि वह अपने पिता को अपना लिवर डोनेट करेगी तो जांच के दौरान यह पता चला कि देवनंदा का लीवर खुद बीमार है यानी देव नंदा का लीवर स्वस्थ नहीं था.
एक बार तो देव नंदा को ऐसा लगा कि उसकी सारी आशाओं पर पानी फिर गया है लेकिन देव नंदा ने हिम्मत नहीं हारी और उसने डॉक्टरों से सलाह मशवरा किया कि क्या ऐसा हो सकता है कि मैं अपने लीवर को ठीक करूं और ठीक होने के बाद अपने पिता को डोनेट करूं, तो डॉक्टरों ने उसे कुछ उपाय सुझाए जिसमें कुछ व्यायाम और डाइट चार्ट शामिल थे.
देवनंदा जीवन में एक कठोर अनुशासन को शामिल किया और जल्द ही अपने लिवर को स्वस्थ कर लिया और पिता को डोनेट करने के लिए तैयार हो गई. इन सबके बाद भी परिवार वाले और डॉक्टर तैयार नहीं थे लेकिन देवनंदा ने किसी की एक भी नहीं सुनी और अपनी जिद पर अड़ी रही कि वह अपने पिता को जरूर बचाएगी.
जब डॉक्टर भी मान गए और सारी बातें ठीक हो गई तो सबसे बड़ी मुसीबत बनी देवनंदा की उम्र. देवनंदा 17 साल की थी और भारत में यह कानून है कि कोई भी जीवित नाबालिक अपना अंग दान नहीं कर सकता. लेकिन देवनंदा यह तय कर चुकी थी कि उसे किसी भी प्रकार से अपने पिता को बचाना है और अपना लीवर अपने पिता को देना है.
कानूनी दांव पेंचों को समझने के लिए और विशेष इजाजत लेने के लिए देवनंदा ने बहुत सारी जानकारियां इकट्ठा कि. इसी बीच देवनंदा को यह पता चला की भारत में 1994 में बने कानून जिसमें यह साफ है कि कोई भी नाबालिक जीवित रहते हुए अपना अंगदान नहीं कर सकता लेकिन इस कानून में साल 2011 में एक संशोधन भी हुआ है और इस संशोधन पर अगर गौर किया जाए तो इसमें साफ लिखा है कि अगर कोई विशेष परिस्थिति हो या फिर कोई उचित कारण बतलाया जाए तो इन नियमों में बदलाव किए जा सकते हैं.
17 साल की नाबालिक देवनंदा को यहां से आशा की एक किरण दिखी और उसने अपने चाचा की मदद से केरल हाईकोर्ट में एक अर्जी डाल दी और उसने 2011 के इस संशोधन का हवाला दिया. कोर्ट ने देवनंदा की अर्जी पर एक मेडिकल टीम को अपनी रिपोर्ट सौंपने को कहा. पहले तो टीम के डॉक्टरों ने अलकनंदा को इजाजत नहीं दी लेकिन देवनंदा के समझाने बुझाने के बाद डॉक्टरों ने भी सहमति दे दी और फिर कोर्ट ने भी अलकनंदा को अपने पिता को लीवर देने की इजाजत दे दी.
अब बात आती है क्या देवनंदा ऐसी पहली भारतीय है जिसे कम उम्र में अंगदान करने की इजाजत दी गई है तो यह सही नहीं है. इससे पहले मुंबई की रहने वाली 16 साल की एक लड़की को भी कैंसर से लड़ रहे उसके पिता को अपने अंग डोनेट करने की इजाजत दी गई थी. लेकिन संजोग बस ऑपरेशन नहीं हो सका और इस प्रकार केरल की 17 साल की देवनंदा भारत की पहली सबसे कम उम्र की ऑर्गन डोनर(Yougest Organ Donor) बन गई है.